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हिमाचल प्रदेश के बांधों का कड़वा सच दो साल पहले पार्लियामेंट स्टैंडिंग कमेटी उगल चुकी है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि हिमाचल के हाइडल प्रोजेक्टों के लिए निर्मित बांध मौत का बारूद हैं। 2012 में संसद में पेश की गई पार्लियामेंट स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि प्रदेश के बाधों के लिए सेंट्रल वाटर कमीशन के मैनुअल का पालन नहीं हो रहा है। परियोजना प्रबंधन अपनी मर्जी से डैम के गेट खोल देते हैं। इसके लिए न तो निर्धारित मापदंडों के तहत हूटर बजाया जाता है और न ही पानी के जलस्तर को आधार मानकर फाटक खोले जाते हैं। कमेटी ने देशभर के बांधों की सुरक्षा व इसके लिए निर्धारित मापदंडों के अध्ययन के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसमें कहा गया था कि देश के 80 फीसदी बांधों में मैनुअल नजरअंदाज हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड तथा दूसरे पहाड़ी राज्यों के बांधों को लेकर स्टैंडिंग कमेटी ने विस्तार से उल्लेख किया था। ऑनलाइन उपलब्ध इस रिपोर्ट में सेंट्रल वाटर कमीशन के मैनुअल भी दर्शाए गए हैं। लारजी प्रोजेक्ट ने इन आदेशों को धत्ता बताकर बांध का पानी छोड़ दिया और इससे देश के होनहार इंजीनियर्स की मौत हो गई। बता दें कि प्रदेश की ब्यास, पार्वती, सैंज तथा तीर्थन चार नदियों के संगम पर बने लारजी प्रोजेक्ट को प्रदेश का ऑइडल प्रोजेक्ट माना जाता है। यही कारण है कि हाइड्रो परियोजना प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञ लारजी प्रोजेक्ट की हर तकनीक का बारीकी से अध्ययन करते हैं। हैरत है कि राज्य के आदर्श कहे जाने वाले लारजी प्रोजेक्ट ने तमाम नियमों को धत्ता बताते हुए पानी छोड़ दिया
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