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‘जल ही जीवन’ का नारा हिमाचल प्रदेश में उल्टा भी पड़ रहा है। यहां की ‘जीवनदायनी’ नदियां हर साल औसतन 100 से सवा सौ लोगों की जान ले रही हैं। मनाली से मंडी तक बहने वाली ब्यास सबसे खतरनाक बनती जा रही है। हर साल औसतन 25 पर्यटक, स्थानीय लोग पानी का शिकार बन रहे हैं। हर तीसरे दिन इस क्षेत्र में पर्यटकों के डूबने, राफ्ट पलटने, नहाती बार गोता लगने से मौत के समाचार मिल रहे हैं। इसके अलावा कांगड़ा में बनेर, गरली-रक्कड़ के पास ब्यास दर्जनों लोगों की जान ले रही है। कांगड़ा के पास बनेर खड्ड में हर साल आठ से दस डूब रहे हैं। ज्यादातर इनमें पर्यटक शामिल हैं, जो चेतावनी की अनदेखी कर खतरनाक बन चुके स्पॉट को ही चुनते हैं। यहां एक बार डुबकी लगाई तो वापसी की कोई उम्मीद नहीं। दूसरी ओर महाकालेश्वर भी मौत का सौदागर बन गया है। यहां भी पर्यटक, श्रद्धालु चेतावनी के बावजूद ‘भंबर’ में कूदते हैं और वापस नहीं लौट पाते। मनाली से औट तक तो हर दिन कोई न कोई छोटी-बड़ी घटना सामने आ रही है। यहां कलकल करती ब्यास तो मानो पर्यटकों को काल का संदेश देकर ही आकर्षित करती है। गर्मी के मारे पर्यटक न सोचते हैं और न ही समझते तथा पानी के साथ अठखेलियां शुरू कर देते हैं। कोई फिसल कर डूब जाता है तो कोई एकदम आए पानी का शिकार बन जाता है। यही नहीं, ऊपरी शिमला की नदियां तो हर साल दर्जनों लोगों को चुपचाप ही अपने आगोश में ले लेती हैं। बुद्धिजीवी चिंता जता रहे हैं कि कब तक यह ड्रामा चलता रहेगा। कब नदियों के किनारे पैट्रोलिंग और एंट्री प्वाइंट्स पर पर्यटकों को सतर्क कर दिया जाएगा। कब सरकार कुंभकर्णी निंद्रा से जागेगी।
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