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साधु-संत हमारे लिए शर्म का विषय बन गए

aaj ki bat
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V sharma
आध्यात्म, आस्था, धर्म की संस्कृति और इतिहास पर गर्व करते हम नहीं थकते। जब भी भारत पर अभिमान करने की बात आती है, सबसे पहला कारण यही बताया जाता है कि भारत विश्वगुरु है, शांति की तलाश में दुनिया भर के लोग हमारे यहां आते हैं, संतों की हमारी सुदीर्घ परंपरा है, आदि। लेकिन आज यही साधु-संत हमारे लिए शर्म का विषय बन गए हैं। अपवादस्वरूप एकाध संत-महात्मा ऐसे होंगे, जो सचमुच माया-मोह का त्याग कर सही अर्थों में आध्यात्म की राह पर आगे बढ़ते हैं। अन्यथा आज करोड़पति-अरबपति बनने का एक आसान तरीका यह मान लिया गया है कि साधु, बाबा बनकर कोई आश्रम खोल लिया जाए, जहां काली कमाई करने वाले अपने धन को सुरक्षित रख सकें और धर्म का व्यापार भी फलता-फूलता रहे। रोजमर्रा के जीवन की कठिनाइयों से जूझती जनता को क्षणिक राहत साधु-संतों के सत्संगों में हासिल होती है, लिहाजा इनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती जाती है। राजनेताओं के लिए भी ये आश्रम कई तरीकों से सुविधाजनक साबित होते हैं, इसलिए वे भी यहां चल रही अवैध, गैरकानूनी बातों को अनदेखा करते चलते हैं और कई बार अपनी छत्रछाया में बढऩे भी देते हैं। आज जो आसाराम प्रकरण देश में घटित हुआ है, वह इसका प्रमाण है। खुद को कभी भगवान या कभी भगवान से ऊपर बताने वाला आसाराम पहली बार विवादों में नहींपड़ा है। देश में जगह-जगह करोड़ों की जमीन पर आश्रम खड़े करना, अपने अनुयायियों पर नाराजगी में आकर पैर चला देना, जलसंकट के समय लाखों लीटर पानी की होली खेलना, आश्रम में बच्चों की संदिग्ध मौत होना, बलात्कार पीडि़ता के लिए यह कहना कि बलात्कारियों को भाई बोलती या भगवान का नाम लेती, तो बच सकती थी, ऐसे कई प्रकरण हैं जो नैतिकता, आध्यात्मिकता, कानून हर तरह से गलत है। लेकिन इनमें से किसी पर भी आसाराम के खिलाफ कोई कार्रवाई नहींहुई। हर बार विवाद उठता, कुछ दिन चर्चा में रहता और फिर संभवत: आसाराम के रसूख के कारण दब जाता। नाबालिग लडक़ी से दुराचार के प्रकरण में भी पुरजोर कोशिश की गई कि मुद्दे को दबा दिया जाए। लडक़ी के पिता आसाराम के श्रध्दालुओं में से एक थे, उनका आश्रम बनवाने से लेकर सत्संग का इंतजाम करवाने में वे लगातार सक्रिय रहे। उन्हें स्वप्न में इसका भान नहींथा कि एक व्यक्ति पर श्रध्दा की इतनी भारी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी। जब उस बच्ची ने आसाराम द्वारा किए गए दुराचार की शिकायत जब अपने घर में की, तो उसकी रिपोर्ट दर्ज कराने में उन्हें खासी तकलीफ उठानी पड़ी। आसाराम और उसके भक्तों ने पीडि़ता के परिजनों को धमकाने में कोई कसर नहींछोड़ी। लेकिन उन लोगों ने हिम्मत नहींहारी। अगर किसी सामान्य व्यक्ति पर ऐसा आरोप लगता तो पुलिस उसे हिरासत में पहले लेती और पूछताछ बाद में करती। किंतु यह देखना बेहद पीड़ादायी था कि किस तरह आसाराम ऐसे संगीन आरोप के बावजूद राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश घूमता रहा। कभी प्रवचन देते, कभी जन्माष्टमी मनाते। खुद को निर्दोष बताता, लेकिन पुलिस के सामने आने से बचता रहा। पुलिस ने भी उन्हें एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक घूमने का, कानून की गिरफ्त में आने से बचने का भरपूर मौका दिया। वे ध्यान में आठ घंटे तक रहे और पुलिस उन्हें समन पकड़ाने के लिए इंतजार करती रही। उन्हें 31 अगस्त तक की मोहलत भी दी गई, और जोधपुर पुलिस, इंदौर के उसके आश्रम में घंटों बाद उन्हें गिरफ्तार कर पायी। ऐसी रियायत आम आदमी को मिलती हो, याद नहींपड़ता। इसके बाद कैसे कह सकते हैं कि इस देश में कानून सबके लिए बराबर है। आसाराम के खिलाफ मीडिया ने जोरदार मुहिम छेड़ी हुई थी। आज उस पर जो कानूनी कार्रवाई हुई है, उसमें मीडिया की बड़ी भूमिका है। इस बीच यह देखना दुखद था कि किस तरह भाजपा के कुछ बड़े नेता अदालती कार्रवाई से पहले ही आसाराम को निर्दोष बताते रहे। क्या इन लोगों के लिए भारत की न्याय व्यवस्था कोई मायने नहींरखती। अब जबकि आसाराम पुलिस हिरासत में है, तो बिना किसी दबाव के उससे कड़ी पूछताछ कर मामले का सच सामने लाना चाहिए। अन्यथा हमारी कानून व्यवस्था का मखौल बनने में देर नहींलगेगी। रही बात उसके अनुयायियों की, जो आंसू बहा रहे हैं, धरना दे रहे हैं, अगर वे सचमुच धार्मिक हैं, आस्थावान हैं, तो दूध का दूध और पानी का पानी होने दें और अपने न्याय के धर्म पर भरोसा रखें।

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