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विकराल रूप लेती बढ़ती बेरोजगारी

aaj ki bat
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V sharmaदेश में तमाम प्रयासों के बावजूद बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस समस्या को हर हालत में नियंत्रित करने का प्रयास होना चाहिए अन्यथा परिणाम भयानक हो सकता है। पहले अशिक्षित और अकुशल लोग बेरोजगारों की अंग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते थे, परंतु अब स्थिति इसके ठीक उलट है। अब शिक्षित बेरोजगारों की संख्या सबको पछाड़ चुकी है। यह हैरानी नहीं बल्कि उस देश के लिए शर्म की बात है जो महाशक्ति बनने का दावा करता है। आखिकार हमारी पहचान शिक्षित बेरोजगारों को पैदा करने वाली फैक्ट्री की कैसे बन गई? इसका मूल्यांकन कब किया जायेगा। शिक्षित बेरोजगारों की बड़ी संख्या को देखकर कोई भी कह सकता है कि हमारे यहां डिग्रियों की कीमत सड़े कागज से अधिक नहीं हो सकती। आखिकार उस डिग्री का मूल्य क्या है जो लोगों को नौकरी नहीं दिला सकती है। यकीनन अब भी ऐसी डिग्रियां बांटी जा रही हैं जिनकी आज के परिवेश में अहमियत दो कौड़ी की भी नहीं है। फिर भी इसे लेने वालों की संख्या घटने की बजाए बढ़ती जा रही है। इसे छात्रों-अभिभावकों का कैसे भी डिग्री लेने का लालच कहा जाए अथवा कुछ और, खुद उन्हें इस पर आत्म मूल्यांकन करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि सत्ता के ठेकेदारों को इससे मतलब नहीं रह गया है कि संस्थान जिन डिग्रियों को बांटने की फैक्ट्री चला रहे हैं, उससे दो वक्त की रोटी मिल सकती है अथवा नहीं। गली-गली में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए प्रबंधन और इंजीनियरिंग संस्थानों को देखकर यह भरोसा नहीं होता कि ये रोजगार पैदा करने के साधन हैं। इनकी डिग्रियों को लेकर जो नौजवान बाहर निकल रहे हैं वे खुद यह समझ नहीं पाते कि इसकी अहमियत क्या है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो ज्यादातर डिग्रीधारकों का भविष्य गर्त में जाने से रोक पाना संभव नहीं होगा।

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